इश्क़ कहता हूँ इश्क़ जाता नहीं,
इश्क इश्क करते हो पर बताते नहीं।
क्या रखा है इश्क में ये तो बताओ। इश्क वो है जो समझ ले,
इश्क वो है जो पढ़ ले,
इश्क वो है बिन बताए तकलीफ समज ले।।
इश्क वो है तुम्हें अपना बना ले,
इश्क वो है जो जलने से जलता नहीं।
इश्क वो है खुद को मिटा कर
तुमको पाना ।।
अंतहीन इश्क
इश्क वो है सब कुछ भुला कर तुम को याद रखना।
इश्क, इश्क, क्या करते हो गालिब इश्क से हमको बेहद नफ़रत है।
इश्क करने से नहीं होता इश्क होता है,
किसी की आँखों में डूबना नहीं पढ़ता डूब जाया जाता है।
बाज़ार में वो इतर कहा जो उसके बलो से ख़ुशबू आती है। उसके बिना क्या जीना वो जीना एक मौत ए हयात है।
मेरा क्या कसूर उस इश्क से जो मुझे नहीं मिला,
मेरी क्या खता जो हमें इश्क ने हमें मिटा दिया।
मेरी आँखों से उसके लिए इश्क का नशा अभी भी नहीं उतरा।
तुम कहते हो क्या है इश्क ।
इश्क वो बला है जो तुम खुद को मिटा कर भी नहीं पा सकते वो शक्स इश्क में उसका हसना तुम्हारा हसना है।
इश्क में उसका रोना तुम्हारा रोना है।
इश्क में उसकी बात एक गुलाब का मूर्ख है।
इश्क में उसका चेहरा चाँद का नूर है।
इश्क, करता है वो जाता नहीं।
इश्क में खुद को इतना मिटाते हैं वो।
इश्क में सब कुछ खोना पढ़ता है।
इश्क में सब कुछ कह कर उसको पाना पढ़ता है।
इश्क में इंतज़ार उसके नाम का होता है।
इश्क़ में वो इंतज़ार कभी ख़त्म नहीं होता,
या फिर उनसे ये इश्क कभी ख़त्म नहीं होता ।
खुद को मिटा कर उसको पाया था, आज जिंदा लाश बैन कर उसको हम ना दिखें।
हमने देखा जमाने को सिर्फ उसको ना दिखे।
वो वक्त पलट आएगा जब उसको फिर से इश्क होगा।
वो हम ना होंगे,
वो हमारी रात ना होगी,
वो हमारी बात ना होगी, वो हमारी कहानी ना होगी,
वो हम ना होगे वो तुम ना होगे,
तुम में हम ना होगे, हम में तुम ना होगे।
इश्क ये है खुद को मिटा कर उसको ना पाना।।
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