घोर घनन बादर छावै। नाचत मोर चिरै अति मन भावै ।।
ढुंडत शाम, राधा गावै। प्रेम हमार लो चा “ ” हिया ।।
समन एतत मोर प्रेम धारा। देख लो सखी त्वं हृदय द्वारा।।
माधव कहे, तोहार याद आवै । मोर हृदय लो लागीया।।
बिरहा लागे चिंतित मोर मस्तिष्क । समन जैसेहिरण दौरे देख ब्याध कनिष्क
।।
अहांक हित नैना जबही ं लागे। तबही ं स्थिर हृदय मोर अति अनुरागे ।।
द्वारकाधीश कहे, हे उद्धव सखा मोर। करोमी गमन संदेश सह बृज की ओर।।
समन एतत मोर कृ ष्ण हित भक्ति गा1ा। कहत कवि प्रेम लागी हृदय हित सा1ा
।।
उद्धव कहे सुनाहूं स खिगण मोर संदेशा | भेजत श्याम प्रेम हित लागी तोहार
रिषिके शा ।।
खीचत कर्गजम्, होवत दो भाग। उद्धव कहे प्रेम हित लागी तोहार सब जीवन
व्यर्थ ।।
राधा कहे, स्थिर मन मृत को भाए। जी वित सदही ं प्रेम को पाए।।
देख प्रभु हित यह अमर वाणी। उद्धव कहे मोर क्षमा करो पश्च्यामी ।।
समन एतत मोर प्रेम वाणी। कहत सखी छोरत सब ग्ला नि ।
द्वारका बृज की भां ति दू री। अबहुँ युग की प्रेम की क1ा पूरी।।
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